December 6, 2025

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ऊर्जा नगरी कोरबा में हो रही है गौमाताओं की दुर्दशा नरवा “गरूवा” घुरवा आऊ बारी की नारा देने वाले शासन प्रशासन ही बने गौद्रोही

प्रखर राष्ट्रवाद न्यूज कोरबा -छत्तीसगढ़ शासन की सबसे प्रमुख और महत्वाकांक्षी योजना नारुवा “गरुवा” घुरुवा आऊ बारी है,परंतु पूरे छत्तीसगढ़ में गौमाताओं की स्थिति बद से बदतर है, देश में ऊर्जाधानी के नाम से प्रसिद्ध कोरबा नगरी में गौमाताओं की स्थिति अति दयनीय हो चुकी है,गौ सेवा के लिए दिखावे मात्र के लिए बने तथाकथित संगठन हो,या कोई हिन्दू हृदय सम्राट कोई हिंदूवादी संगठन,या फिर गौ सेवा के लिए समर्पित …. नरुवा ” गरवा” घुरूवा आऊ बारी ….नारा बुलंद करने वाले शासन प्रशासन कोई सुध लेने वाले नहीं हैं।

जिले में निर्भयता पूर्वक गौ सेवा के लिए समर्पित समाज सेविका मेघा चौहान ने कहा कोरबा के सी इस ई बी कालोनी में लगता है देश के सबसे प्रभावशाली,पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित,एवं अत्यन्त पढ़े लिखे लोग निवास करते हैं जो गायों से आतंकवादियों कि तरह व्यवहार करते हैं,भूलवश भी कोई गौमाता घूमती नजर आ जाती हैं तो फिर सी एस ई बी कालोनी के चीफ इंजीनियर शैलेन्द्र शर्मा,इंजीनियर आर पी टंडन के शान में इतनी गिरावट आ जाती है कि अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से विचरण करती गौवंश को लाठी डंडों से मार मार कर अधमरा करवा देते हैं।

गौमाता करें पुकार अब हमें भी जीने दो, कोरबा जिला प्रशासन और छत्तीसगढ़ सरकार

जिले के पूर्व जिलाधीश संजीव झा के आदेश मवेशी मुक्त सड़क के बाद तो यूं कहें कि गौमाताओं के आंख से आंसू ही नई रुक रहे हैं, सोच रही हैं गौ माताएं की अब कलेक्टर साहेब भी आदेश कर दिए,गौठान नामक “जेल”में डालने के लिए जहां न चारा है न पानी है,है तो सिर्फ दयनीय जीवन और असमय मृत्यु की कहानी है।प्रशासन के कर्मचारी गौवंश को उठाकर गौठान नामक “जेल”तो लेकर जाते हैं पर हो सकता है रात के अंधेरे में तस्करों को बेच कर मोटी रकम भी कमाते हों।ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि कुछ दिन पूर्व शहर के इमली डुग्गू में सैकड़ों गौवंश के अस्थियों के डेर,एवं मांस मिले थे।कह रही गौमताएं जाएं तो अब कहां जाएंक्योंकि चारागाह भूमि पर अवैध कब्जा कर घर बना लिए गए हैं,भूमाफिया प्लाटिंग कर बेच रहे हैं,बाकी कहीं पर रोहिंग्या बस जा रहे हैं।शहर के पढ़े लिखे लोगों के घर,दरवाजे पर अब गौमाताओं के लिए कोई जगह नहीं बची,है तो सिर्फ कुत्तों के लिए।अब इस स्थिति में गाएं कालोनी कि तरफ रुख करती हैं कहीं कुछ मिल जाए खाने को,शहेर के पढ़े लिखे लोग खाने को भले कुछ नहीं देते पर डंडे मारकर जरूर भगा देते हैं।मजबूरन जीवनदायिनी गायों को सड़क पर जाना पड़ता है।जहां से उनहें संवेदनहीन प्रशासन के संवेदनहीन कर्मचारी उठाकर गौठान नामक “जेल”में छोड़ देते हैं बाकी बची जीवन को मृत्यु के हाथ में। छत्तीसगढ़ प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गौवंश के लिए करोड़ो करोड़ों रुपए खर्च कर रही है ऐसा शासन प्रशासन के द्वारा दावा किया जाता है,पर यदि दयनीय स्थिति में जहां तहां विचरण कर रही गौवंश से ही पूछा जाए कि सरकार की इस योजना से क्या लाभ हुआ।तो सिर्फ रोते हुए गौमाताएं बोल सकती हैं कि सरकार ने हमारे लिए जल्दी मृत्यु होने के लिए गौठान नामक “जेल” बनाए और हमारे नाम पर करोड़ों रुपए कागज में ही खर्च कर उपर से नीचे तक शासन प्रशासन के बिचौलिए डकार लिए।

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